वेे जाने क्या क्या सिखा गए, गीता का पाठ पढ़ा गए।। नहीं धर्म कोई कर्म से बढ़कर, जन-जन को बात बता गए।। वो जाने क्या क्या सिखा गए, दौलत नहीं कोई मित्र से बढ़कर, सुदामा के जरिए बतला गए।। वे जाने क्या क्या सिखा गए।। पाप नहीं कोई अन्याय से बढ़कर, बढ़ा चीर समझा गए।। वो जाने क्या क्या सिखा गए।। गीता का पाठ पढ़ा गए।। पीताम्बर धारी,होठों पर मुरलिया कंठ बैजन्ती माल, तेरी हर लीला थी न्यारी, व्यक्तित्व तेरा था बड़ा कमाल।। अपनी हर लीला से हमें जाने क्या क्या सिखा गए।। वे गीता का पाठ पढ़ा गए । भाव नहीं कोई प्रेम से बढ़कर, राधा संग रास रचा कर, पूरे जग को दिखला गए ।। वे जाने क्या क्या सिखा गए।। संघर्ष भरा रहा जीवन उनका, पर हर राह पर महक अपने वजूद की फ़ैला गए।। वे जाने क्या क्या सिखा गए।। नहीं ईश्वर होता कभी भी, माता-पिता से बढ़कर, सबके जेहन में बसा गए।। नहीं पूजनीय कोई नारी सा, नारी अस्मिता को बचा गए।। वे जाने क्या क्या सिखा गए।। पाठ गीता का सबको पढ़ा गए।। नहीं विध्वंसक कुछ भी युद्ध से...