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विकास दिव्यकीर्ति(( सम्मान स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शिक्षक के मायने

शिक्षक दिवस विशेष(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शि--क्षा ही नहीं,  शिक्षक शिष्य को देता है संस्कार क्ष--मा कर देता है उसकी अनेकों गलतियाँ,  मकसद, उसका बस हो शिष्य  के जीवन में सुधार क---भी नही चाहता बुरा शिष्य का गुरु, दिनोंदिन कर देता उसका परिष्कार *हौले हौले आ जाता है उसके व्यक्तित्व में अदभुत सुधार* *गुरु का स्थान है गोविंद से भी ऊँचा  है,  गुरु, शिष्य के आदर और प्रेम का हकदार* *आज शिक्षक दिवस हमें सिखा रहा यही, शिष्य चित्त में आए न कभी अहंकार* *गुरु और सड़क हैं राही एक ही सफर के, बेशक खुद रहते हैं वहीं, पर शिष्य को  आगे बढ़ने का बना देते हैं हकदार।। *असली मायने शिक्षक के सार्थक हो जाते हैं जब वो हमारे भीतर जिज्ञासा,जिजीविषा,कर्मठता,लक्ष्य निर्धारण और प्रेरणा के गुणों का कर देता है संचार*  *मात्र अक्षर ज्ञान देने वाला ही शिक्षक नहीं होता, हो सकते हैं शिक्षक मात पिता,भाई बहन,मित्र,सहकर्मी और रिश्तेदार* *प्रलय और निर्माण* दोनों गोद में पलते हैं शिक्षक के, *सृजन और विध्वंस दोनों पर उसका अधिकार* *कच्ची माटी है शिष्य, शिक्षक कुम्हार दे सकता है मनचाहा आकार* *अथाह, अनंत,असीमित सागर सी संभावनाओ...

किस बात का आपको है इंतजार(( प्रश्न स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

शिक्षक दिवस(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शि---क्षा ही नहीं, शिक्षक शिष्य को देता है संस्कार, क्ष--मा कर देता है उसकी अनेकों गलतियाँ, मकसद, उसका बस शिष्य सुधार, क---भी नही चाहता बुरा शिष्य का, गुरु,दिनोदिन कर देता उसका परिष्कार, हौले हौले आ जाता है उसके व्यक्तित्व में अदभुत सुधार, गुरु का स्थान है गोविंद से भी ऊँचा,  है गुरु शिष्य के आदर और प्रेम का हकदार, आज शिक्षक दिवस हमे सिखा रहा यही, शिष्य चित्त में आए न कभी अहंकार, गुरु और सड़क हैं राही एक ही सफर के, बेशक खुद रहते हैं वहीं,पर शिष्य को आगे बढ़ने का बना देते हैं हकदार।।

हमारा प्यार हिसार *करते हैं जब बड़े सत्कर्म* विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा