*सोच कर्म परिणाम तीनों की त्रिवेणी युगों युगों से युगों युगों तक संग संग बहती आई है* *मैं भी जानू तू भी जाने, समय की धारा ने , बात यही समझाई है** हम जो सोचते हैं, वैसा ही करते हैं, और जैसा करते हैं उसी का परिणाम हमें भुगतना पड़ता है। हमारे किए कर्म ही एक दिन हमसे मुलाकात करने आ जाते हैं, उस समय हैरानी नहीं होनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारी सोच कैसी हो??? इसमें एक नहीं, अनेक कारक है जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं हमारा परिवेश परवरिश,नाते, मित्र, हमारी प्राथमिकताएं,हम से जुड़े हुए लोग, हमारा कार्यस्थल,हमारे संवाद, हमारे संबंध,हमारे बचपन से लेकर आज तक के अनुभव, हमारे मात पिता से संबंध,हमारी विफलताएं और हमारी उपलब्धियां और सबसे महत्वपूर्ण हमारी शिक्षा और उससे भी महत्वपूर्ण हमारे *संस्कार* क्या हमारे संस्कार इतने ताकतवर हैं जो हमारी सोच को प्रभावित कर पाएं और हम उसी के अनुसार अपने कर्म करें।कहीं आधुनिकता की अंधी भागदौड़ में हम वो देख ही नहीं रहे जो हमे देखना चाहिए *सुख सुविधाएं* शांति और सच्ची खुशी की गारंटी नहीं ले सकती। अधिक की कोई स...