शि---क्षा ही नहीं, शिखर तक ले जाने वाला शिक्षक शिष्य को देता है संस्कार। क्ष--मा कर देता है उसकी अनेकों गलतियाँ, मकसद, उसका बस शिष्य सुधार। क---भी नही चाहता बुरा शिष्य का, गुरु,दिनोदिन कर देता उसका परिष्कार। हौले हौले आ जाता है उसके व्यक्तित्व में अदभुत सुधार। गुरु का स्थान है गोविंद से भी ऊँचा, है गुरु शिष्य के आदर और प्रेम का हकदार।। आज शिक्षक दिवस हमे सिखा रहा यही, शिष्य चित्त में आए न कभी अहंकार।। गुरुऔर शिष्य हैं सड़क और राही एक ही सफर के, बेशक गुरु खुद रहते हैं वहीं, पर शिष्य को आगे बढ़ने का बना देते हैं हकदार।। स्नेह प्रेमचंद