श्रद्धा से हो किया जाता है ,उसे ही श्राद्ध कहते हैं,जो चले जाते हैं छोड़ साथ हमारा,उनको हम शीश नवाते हैं,मातृ और पितृ ऋण से कभी उऋण नही हो सकते हम,जाने किन जतनो से हमे वो ज़िन्दगी की राहों पर चलना सिखाते हैं,वो प्रेमतरु जो नही रहा अब,उसके पुष्प और कलियाँ अब भी उनकी ही बदौलत चमन महकाते हैं,आज के दिनहम सब पापा ,आप की यादों को जेहन में लाते हैं,श्रद्धा से दे रहे हैं हम सब श्रदांजलि,श्रद्धा से ही शीश नवाते है..