धरा ने धीरज,गगन ने दे दिया विस्तार। सागर ने असीमता, पर्वत ने अडिगता, दिनकर ने तेज दे दिया अपार। तारों ने चमक,कोयल ने मीठा बोल, खगसमूह ने संगठन का दे दिया आधार। इंदु ने शीतलता,नदिया ने गति,पुष्पों ने महक, समीर ने बहाव का दे दिया है सार। माँ का तो प्रकृति ने ही करके भेजा है, अदभुत, अनोखा,अद्वितीय श्रृंगार।। स्नेहप्रेमचन्द