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सार्थक करने आ जाते हैं रविवार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सार्थक करने आ जाते हैं हर रविवार संकल्प को मिला ही देते हैं सिद्धि से हर बार कहते नहीं कर के दिखा देते हैं ऊर्जा,जिजीविषा,उल्लास,मेहनत के होते हैं दीदार हर सफर को मंजिल मिले ज़रूरी तो नहीं पर मंजिल मिलेगी किसी ना किसी सफर को जानते हैं बखूबी कर्मों का सार आज नहीं तो कल सत्कर्मों का फल मिलता ही है,गगन सी सोच का नित नित होता विस्तार सौ बात की एक बात है कर्म ही इनका सच्चा अलंकार भले काम में देरी जैसी किस निमंत्रण का कर रहे हो इंतजार आप भी आओ हम भी आएं सार्थक करने अपना रविवार स्वच्छता,सौंदर्य, कला की यहां बहती है त्रिवेणी शिक्षा संग मिलते यहां संस्कार