शोक नही,संताप नहीं माँ, हम प्रेम से शीश झुकाएंगे। हमने पाया ऐसी माँ को, बड़े गर्व से सबको बताएंगे। युग आएंगे,युग जाएंगे, होते हैं जो ऐसे इंसा, उनको लोग भुला नही पाएंगे। व्यक्ति नहीं,बन जाते हैं विचार वे, उदहारण उनके हम देते जाएंगे। वह सागर,हम बूंद सही, अपने वजूद को तो गीला कर जाएंगे।। कतरा कतरा बनता है सागर, ज़र्रा ज़र्रा बनती है कायनात। मां से बढ़ कर ईश्वर ने नहीं दी, कोई भी इंसा को सौगात। ऐसी सोच का दरिया, घर घर में अब हम बहाएंगे। शोक नहीं,संताप नहीं हम बड़े प्रेम से शीश झुकाएंगे।। हमने पाया ऐसी मां को, बड़े गर्व से सबको बताएंगे।। कर्म के तबले पर, जिजीविषा की थाप है मां। मेहनत की हांडी में, सफलता का साग है मां। सहजता के तवे पर, सुकून की रोटी है मां। वात्सल्य के सितार पर, मधुर सी धुन है मां। स्नेह के गुल्लक में, संतोष के सिक्के है मां। अनुराग की आंखों पर, सौहार्द का चश्मा है मां। कर्मठता के कानों में, विनम्रता की बाली है मां। घनिष्ठता की थाली में, अपनत्व की कटोरी है मां। सामंजस्य के फ्रीजर में उल्लास की बर्फ है मां। कर्म की सड़क पर, सफलता का पुल है मां। एहसासों के समन्दर में, सुरक...