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अच्छा नहीं लगता मुझे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अच्छा नहीं लगता मुझे जब  बेटियां अपने ही घर हो जाती हैं मेहमान भाई से लड़ झगड़ कर खाने वाली पहले आप पहले आप का करने लगती हैं गान करती हैं संवाद बड़े संभल संभल कर,छोड़ सहजता औपचारिकता का पहन लेती हैं परिधान अच्छा नहीं लगता मुझे जब  बच्चे संवाद और संबोधन दोनों ही कर देते हैं कम  अच्छा नहीं लगता मुझे जब पीहर से जाते हुए मां को देख आंखें हो जाती हैं नम अच्छा नहीं लगता मुझे जब पल पल साथ रहने वाले भाई बहन एक दूजे से फोन कर कुशल क्षेम पूछने से भी कतराते हैं अच्छा नहीं लगता मुझे जब भाइयों को बहनों के घर दस्तक दिए बरसों बीत जाते हैं क्यों मात पिता के जाने के बाद  भाई   पिता सी प्रीत नहीं निभाते हैं??? अच्छा नहीं लगता मुझे जब बेटे दुख दर्द बांटने की जगह वसीयत बांटने आ जाते हैं जीवन की सांझ में मात पिता संग रहने में उनके लफ्ज़ और लहजे दोनों ही बदल जाते हैं अच्छा नहीं लगता मुझे जब एक ही छत तले मात पिता और बच्चे अलग अलग रसोई बनाते हैं ऐसा तो हो ही जाता है दे कर कुतर्क वे सामान्य सा हो जाते हैं मात पिता को तन्हा छोड़ उनके हिवड़े भी नहीं अकुलाते हैं ऊंगली पकड़ कर च...