बिन प्रेम सब सूना है जग में, प्रेम ही है हर रिश्ते का सार। जिसने पढ़ ली प्रेम की पाती, समझो अपना जीवन लिया संवार।। प्रेम संवेदना के पिता है,और संवेदना का ममता से है माता का नाता, संवेदनशील होना है बहुत ज़रूरी,इंसान क्यों सब ये है भूलता जाता????? नियत समय के लिए ही तो हम सब को किरदार अपना अपना निभाना है,क्यों न निभाएं इसको सही तरह से,इस जग को छोड़ कर जाना है,ज़रा सोचिए।।प्रेम सबसे मधुर अहसास है,जहां प्रेम है वहां ईर्ष्या,लोभ,अहंकार सब नष्ट हो जाते हैं,प्रेम की कढ़ाई में सौहार्द का साग ही पकता है।इस साग पर सदैव करुणा का धनिया ही बुरका या जाता है।इसकी सौंधी सौंधी महक से पूरी कायनात महकने लगती है,नजर नहीं,नजरिया ही बदल जाता है।। प्रेम परमार्थ की राह चलता है, मोह स्वार्थ की। *प्रेम में वो ताकत है, सबको अपना बनाने की। वरना क्या औकात थी सुदामा की, माधव को पोहे खिलाने की????? *स्नेह में वो ताकत है अराध्य को अपना बनाने की। वरना क्या जरूरत थी राम को, भिलनो के झूठे बेर खाने की????? *अनुराग में वो ताकत है, सबको अपना बनाने की। वरना क्या जरूरत थी कान्हा को विदुर घर भाजी खाने की???...