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पौंछ लो आंसू

पोंछ लो आंसू सखी द्रौपदी, तुमने बुलाया मैं दौड़ा चला आता हूँ।।।। जब जब होती है हानि धर्म की, मैं यूँ ही चल, आ जाता हूं । नारी रक्षा तो फिर धर्म है सबका, जो हुआ आज,सोच सन्न हो जाता हूँ।। हुआ कलंकित इतिहास आज है। कोई नए युग का आज हुआ आगाज़ है।। हर कोई है अपराधी तेरा, पर मैं  तेरी लाज बचाता हूँ।। तेरे समर्पण में थी वो ताकत, कि मैं दौड़ा चला आता हूँ।।। युग आएंगे,युग जाएंगे तेरी व्यथा न जन भुला पाएंगे।। तेरा चीर बढ़ा कर मैं, अंधेरे में विश्वास का दीप जलाता हूँ।। पोंछ लो आँसू, सखी द्रौपदी, तुमने बुलाया,मैं दौड़ा चला आता हूँ।।