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रास्ते

सराहनीय प्रयास

हर  सफर मंजिल तक पहुंचे जरूरी तो नहीं,पर मंजिल तक जाएगा कोई ना कोई सफर ही,यह ज़रूरी है।।

मंजिल

लंगोट से कफन तक

मंजिल

सुर ने पूछा जब सरगम से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मंजर दर मंजर

बहुत कठिन है

पता ही नहीं चला((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

राहें

मंजिल

सच में नहीं आते

लंगोट से कफन तक

दिक्कत

मुलाकात नहीं हो पाती थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद

कान्हा से द्वारकाधीश तक Thought by Sneh premchand

यमुना के मीठे पानी से, सागर के खारे पानी तक का सफर ही माधव को कान्हा से द्वारकाधीश बनाता है। दस उंगलियों से बजने वाली बांसुरी की मधुर तान से,  एक ऊंगली पर चलने वाले  सुदर्शन चक्र को करण बेदी बनाता है।। गोकुल की गलियों में गईयां चराने से लेकर, कुरूक्षेत्र में मोह ग्रस्त पार्थ को गीता ज्ञान सुनाता है।। सच में समय ही नहीं बदलता,इंसान बदल जाता है।।       स्नेह प्रेमचंद

डगर

डगर

करते रहे सफर

मंज़िल पता नहीं

लंगोट से कफन तक Thought by Sneh premvhand

लंगोट से कफन तक का सफर

न हो गम

न हो गम