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परिवर्तन सच जीवन का

मेहमान poem by sneh premchand

धीरे धीरे अपने ही घर में बेटियाँ हो जाती हैं मेहमान । अज़ब रीत रिवाज़ दुनिया की,पर धीरे धीरे वे जाती हैं मान।।