मेहमान poem by sneh premchand April 08, 2020 धीरे धीरे अपने ही घर में बेटियाँ हो जाती हैं मेहमान । अज़ब रीत रिवाज़ दुनिया की,पर धीरे धीरे वे जाती हैं मान।। Read more