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मां जाई(( दिल की कलम से स्नेह प्रेमचंद))

मां जाई! जीवन की सबसे मधुर शहनाई जी करता है बन के रहूं तेरी परछाई मां की कमी कर देती है पूरी तूं जैसे सहरा में चले ठंडी पुरवाई *जब संवाद खत्म हो जाता है फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है* बखूबी जानती है इस बात की तूं गहराई *संवाद भी कायम रखती है संबंध को भी सींचे जाती है* मेरी छोटी सी बात को इतनी बात समझ में आई जिंदगी का जब परिचय हो रहा था अनुभूतियों से, है तब से मां जाई साथ तेरा मेरा पहर में से देना हो कोई नाम अगर कहूंगी मैं तुझे उजला सवेरा कोई राग नहीं कोई द्वेष नहीं कोई ग्रंथि नहीं कोई क्लेश नहीं सब अपने हम सबके सच में चित में कोई तेर मेर नहीं और परिचय क्या दूं तेरा??? आम पर तूं जैसे अमराई मेरी सोच की सरहद जाती है जहां तक,वहां तक नजर तूं आई मां जाई जीवन की सबसे मधुर शहनाई लम्हे बिताए जो संग तेरे बन जाते हैं ना भूली जाने वाली दास्तान मेरे व्यक्तित्व और अस्तित्व की सच में है तुझ से पहचान *सब हंस कर टाल देना कोई तुझ से सीखे* *सबको अपना बनाना कोई तुझ से सीखे* *किसी भी अभाव का कोई प्रभाव न होना,कोई तुझ से सीखे* एक बात जो तेरी मुझे सबसे अधिक भाती है मिलते हैं जो भी लम्हे संग बिताने के, तूं उन्हे...