स्पर्श है माँ,स्पंदन है माँ,हरकत है माँ,हर हलचल है माँ, है मां जीवन का सबसे मधुर सा साज। उत्सव है माँ,उल्लास है मां,मां ही रीति मां ही रिवाज।। गीत है माँ,संगीत है माँ, सबसे सुंदर अहसास है माँ।। परंपरा है मां,प्रेरणा है मां, सच में सबसे खास है मां।। माँ एक ऐसी गंगा है, जो बच्चों की समस्त गलतियों को नज़रंदाज़ करती हुई अपने आँचल में समाहित कर लेती है। अपनी ममता के सागर से उन्हें आकंठ तृप्त कर देती है।। माँ आस है,विश्वास है,और अधिक नही कहना आता , माँ सब से खास है।। काल है मां, कला है मां,आस है,विश्वास है,सांत्वना है,समर्पण है,त्याग है,समझौता है,भरोसा है। मां तो वो शिव है जो संतान के हिस्से का गरल भी हंसते हंसते पी जाती है। वो ब्रह्मा है जो सृष्टि रचती है,और उसका पालन करती है। वो विष्णु है जो संसार रूपी क्षीर सागर में पूरी कायनात का भार अपने कंधों पर उठाए है।। और परिचय क्या दूं मां तेरा, मेरा परिचय ही तुझ से है। कभी कभी नहीं अक्सर सोचा करती हूं, *सबसे अच्छे मूढ़ में रहा होगा भगवान, जब मां का उसने किया होगा निर्माण। रच रचना अनुपम सी मां की,खुद खुदा भी हो गया होगा हैरान* सच में...