प्रकृति सिखाती है सदा हमे समभाव का अदभुत पाठ। धनी निर्धन सबके लिए है ये एकसी, नहीं चित्त में इसके कोई भी गांठ।। एक सी ही धूप देता है आदित्य सबको, इंदु एकसी ज्योत्स्ना की शीतलता देता है। पवन,पहाड़,नदियाँ या सागर नीर एक जैसा ही व्यवहार है सबके लिए, सबके लिए एक सी ही चलती है समीर।। एक शिक्षा और प्रकृति ने हमसब को बखूबी सिखाई है, करो प्रेम सम्पूर्ण प्राणी जगत से, आज फिजां यही सन्देसा लाई है।। निरीह,निर्दोष,बेजुबान जन्तुओं पर, क्यों हमने कटार चलाई है।। स्नेहप्रेमचंद