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कुटुंब (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कुटुंब में जब होता है प्रेम तो धरा पर ही जन्नत आती है नजर स्नेह,सम्मान और स्पेस दें एक दूजे को हो मन में एक दूजे के लिए कदर हर दुविधा फिर बन जाती है सुविधा खुशी दूनी ग़म आधा रह जाता है सोचते हैं जहां सब एक दूजे के लिए वहीं परिवार कहलाता है अति शुभ और मांगलिक हो आपका यह गृह प्रवेश सुख समृद्धि दे सदा दस्तक रहें दूर सब कष्ट क्लेश दे रहे हैं सब यही दुआ आपको हो प्रेम का सबके चित में समावेश