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मां भारती

एपीजे अब्दुल कलाम((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ए ==क नायाब कृति कुदरत की थी जो, नाम है उसका अब्दुल कलाम।।   पी ==या ज्ञान का प्याला मेहनत की चम्मच से उसने, पूरा विश्व उन्हें करे सलाम।। जे ==ब कर्म की, लग्न के सिक्के,  दिया कभी ना खुद को विराम।। अब==दुल कलाम थी हस्ती एक ऐसी, हर कोई बन गया उनका कद्रदान।। दु ==खी है हर मन भीतर से आज नहीं रही यह हस्ती महान।। ल ==गन लगी बचपन से ऐसी, करना है पूरा जो देखा ऊंचा सपना।। क ==भी ना थकना कभी ना रुकना, फिर सोचो जो भी, हो जाता है अपना।। ला ==वा सा जलता रहा प्रेरणा का उनके भीतर, अनखोजीअनदेखी राहों का कर डाला सफर।। म ==जबूत हौसला बुलंद इरादे,  धीरज की पगडंडी पर कर्म की लाठी से पार कर ली अपनी डगर।।

सलाम लेखनी

रीत जग की

*ये दिग्गज हैं हिंदी के* विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

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