,तुलसीदास या श्रवण कुमार। दोनो ही माइथोलॉजी के सशक्त किरदार।। एक पत्नीभगत एक मात पिता का लाल। सबका अपना अपना नज़रिया, पर हैं दोनो ही कमाल।। विकल्प दिए हैं खुदा ने हमको, ये हमपर है हम क्या चयन करते हैं? कैसे भूल सकते हैं मा बाप को, जो औलाद के लिए ही जीते और मरते हैं। मा बाप तो जन्म से ही साथ हमारे होते हैं, ज़िन्दगी का परिचय करवाते हैं अनुभूतियों से, संग हँसते और रोते हैं। जीवनसंगिनी तो एक उम्र के बाद हमारे जीवन मे आती है। फ़र्ज़ ओर कर्तव्य हैं उसके लिए भी, पर अक्सर मा बाप को वो पृष्टभूमि में ले आती है।। मुख्य को गौण बनाने में सार्थक भूमिका निभाती है। ध्यान से सोचो, मातृ औऱ पितृऋण से हम कभी उऋण नही हो पाएंगे। नही कर सकते कभी भी हम उतना, युग आएंगे,युग जाएंगे।। शक्ल देख हरारत पहचानने वाले मात पिता जाने के बाद कभी नहीं आएंगे।। धरा पर देहधारी भगवान होते हैं मात पिता,ये सत्य हम कब समझ पायेंगे??? वे कब,क्या,कैसे,कितना करते हैं हमारे लिए,ये मात पिता बनने के बाद ही हम जान पाएंगे।। इनके ऋण से कभी ऊ ऋण नहीं हो सकते हम,युग आएंगे,युग जाएंगे।। स्नेह प्रेमचंद...