सुन सहजता का सुंदर परिचय, बेचैनी को ईर्ष्या हो आई। क्यों रहती है ये इतनी शांत और सुंदर, चित्त में चिंता ने अग्नि जलाई।। मैं क्या और कैसे दूँ परिचय अपना, बेचैनी को ये समझ न आई।। *हर पल* *पल पल* ज़िन्दगी का, मुझे मेरी बहना लगता है भारी। रात और दिन मेरे हिवड़े में, ईर्ष्या की सुलगती है चिंगारी।। मुझे क्या मिला,क्या नहीं मिला, इसी पर करती रहती हूं विचार। उसे सुख मानती हूं जो सुख है ही नही, करती हूं ये सत्य मैं स्वीकार।। *आलस्य* मेरे पिता हैं, और *लालसा* है मेरी माता। *क्रोध* है मेरा छोटा भाई, *हिंसा* से बहना का नाता।। *तनाव* हैं मेरे कठोर से प्रीतम, निस दिन रंग उनका मुझ पर चढ़ जाता है। *अवसाद* हैं पितामह हमारे, *अवसाद* और *आलस्य* का तात और सुत का नाता है।। मैं जन्मी यहाँ, मुझे मिले मेरी बहना, कुछ ऐसे ही कुसंस्कार। यही राज़ है मेरी बेचैनी का, ऐसा ही है मेरा परिवार।। परवरिश,परिवेश और प्राथमिकताओं ने, मुझे चिंतन नही चिंता करने सिखाया। निज विवेक से काम लिया नही मैंने, पल पल व्यक्तित्व में ह्रास को ही पाया।। *गौण* को * मुख्य* *मुख्य* को *गौण* यही युगों युगों से मैंने माना है। सही गलत का भेद मेरी बह...