रवि रश्मियां thought by snehpremchand March 29, 2020 रवि रश्मियाँ साँझ ढले उनींदी सी हो, लौट अपने घरौंदे को जाती हैं। इंदु की शीतल ज्योत्स्ना फिर, हौले हौले बाहर निकल कर आती हैं। दिन बदल जाता है रात में, आंखें हों फिर नींद से बोझिल, ख्वाबों की पींग बढ़ाती हैं।। स्नेहप्रेमचंद Read more