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मा से प्यारा नहीं कोई भी नाता(( विचार स्नेह प्रेमचंद चित्र ऐना द्वारा()

मां से प्यारा  नहीं कोई भी नाता मेरी समझ को तो  इतना समझ में आता जाने किस माटी से  मां को बनाता होगा विधाता स्नेह सागर हर मां चित में सागर सा पल पल गहराता  घर के गीले चूल्हे में  ईंधन सी जलती रहती मां दिल में धड़कन  सुर में सरगम सी होती है मां हम से हमारा ही परिचय करवाती मां अपने अथक प्रयासों से लबों पर मुस्कान लाती मां भूख लगे तो तत्क्षण ही रोटी बन जाती प्यारी मां घने तमस में उजियारा मां भीड़ में बनती सहारा मां मन की हर पीड़ा छुपाती पर ऊपर से सदा मुस्काती मां हमें हमारी खूबियों खामियों दोनों से अवगत करवाती मां ख्वाब हमारे बने हकीकत संकल्प को सिद्धि से मिलवाती मां हमारी हर उपलब्धि पर दिल से जश्न बनाती मां चित की बंजर भूमि को पल पल उपजाऊ बनाती मां चित चिंता ना हो बच्चों को कोई, हर समस्या का समाधान बन जाती मां अपने अस्तित्व में हमारे वजूद को समाहित करती जाती मां हर मैल को धो देती है अच्छे से, बारिश सी होती है मां हर धूप छांव में साया सी सच्चा साथ निभाती मां 11स्वर और 33 व्यंजन के  बस की बात नहीं जो चित्रण कर पाएं मां का मां बिन पूर्ण से लगते कभी दिन रात नहीं हर करवट की सिलवट