यूं हीं तो नहीं ये सावन भादों इतने गीले गीले से होते हैं जाने कितने ही अनकहे अहसास बारिश आने पर रोते हैं अच्छी लगती हैं मुझे ये बारिशें इनमे नहा भी लो, रो भी लो किसी को हमारे रोने का इल्म भी नहीं हो पाता अभिनय नहीं करना पड़ता आसूं रोकने का, कई बार सैलाब पर कोई बांध भी नहीं बन पाता बह जाते हैं अश्क तो मन में भी गुब्बार नहीं इकट्ठा होता