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संस्कार

सुनसान

रुझान था तेरा

साहित्य,संगीत, कला के प्रति रहा सदा तेरा विशेष रुझान। रौनक ए अंजुमन कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी कोई, तूं कुदरत का धरा पर अनमोल वरदान।। धन्य हो जाती है लेखनी जब तुझ पर चलती है,रहे ने कोई तेरी शख्शियत से अनजान।।

आदित्य

साहित्य समाज का दर्पण है

संजीवनी बूटी

उठ लेखनी thought by snehpremchhand

उठ लेखनी आज कुछ ऐसा काम करेंगे। साहित्य के आदित्य से रोशन करेंगे जहां को, जननी पर कुछ लिख कर,अच्छे कर्मों के फॉम भरेंगे। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहांन। न कोई है,न कोई होगा,माँ से बढ़ कर जभी महान।।