गंगा घाट सी,शिव के ललाट सी, सिंधु लहर सी, मल हार में बूंद सी, सीप मुख में मोती सी, चिराग में जलती कोई ज्योति सी, चेतना में स्पंदन सी, जीवन में जिजीविषा सी, पर्व में उल्लास सी, गोपियों के रास सी, सबसे सुखद आभास सी, कभी कोई ग़ज़ल सी, कभी कोई कविता सी, जाड़े की गुनगुनी धूप सी, बसंत में अल्हड़ प्रकृति सी, झरोंखे से झांकती किरण सी, इंदु मे ज्योत्स्ना सी, आदित्य की आरुषि सी,सुर,सरगम,संगीत सी, ओस की बूंद सी,नदिया के बहाव सी, अनन्त गगन में उड़ती पतंग सी, बारिश के बाद की उजली हरियाली सी, घने जंगलों में दूर कहीं चहकती कोई कोयल काली सी, नयनों का सुरमा सी,माथे की रोली सी, हवन की समिधा सी,मरुधर मे बरखा सी,गांधी का चरखा सी, क्या क्या उपमाओं से अलंकृत करूं, तुझे ओ मेरी प्यारी बहना। हर उपमा पड़ जाती है छोटी, है तूं हमारे दिल का सच्चा गहना।। स्नेह प्रेमचंद