एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान, न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।। वो कभी नही रुकती थी, वो कभी नही थकती थी, किस माटी से खुदा ने उसका किया था निर्माण? उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!! मां का अक्षत पात्र कभी नहीं होता था रीता,अन्नपूर्णा सी मां सच में महान कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का, हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया, कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का, सब का रोम रोम हर्षाया तन पुलकित और मन आह्लादित सच में मां होती है गुणों की खान हमें हम से ज्यादा जानती है मां मां की ममता का अद्भुत विज्ञान आधि,व्याधि,बाधा,विपदा सब कुछ मां लेती है झेल इसलिए मां का इस जग में होता नहीं कोई भी मेल अपने ही पर्याय को धरा पर भेज विधाता हो गया बेफिक्र, मां से हो गया पूरा जग धनवान एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान मातृऋण से कभी उऋण नही हो पाएंगे तिनके सा अस्तित्व है हमारा तेरी महान हस्ती के आगे , तुझे आजीवन माँ जेहन में लाएंगे दिल पर दस्तक,जेहन में बसेरा, चित में ममता के पक्के निशान अपनी हर पी...