सिया,द्रौपदी फिर उन्मुख हुई दामिनी के, कहा हे दामिनी अब सुनाओ हमे अपनी कलयुगी कहानी। क्या क्या हुआ धरा पर संग तुम्हारे, लगती है ज़िन्दगी तुम्हारी बड़ी वीरानी।। सुन दोनों की बातें फिर प्रकट किए, दामिनी ने निज उदगार। सुन उसकी वेदना और पीड़ा को ,हिवड़ा करने लगा हाहाकार।। छोटी सी थी दुनिया मेरी, था खुशियों भरा मेरा संसार। डस गए कई दानव मुझे ऐसे, चहुँ ओर मैंने किया चीत्कार।। न फ़टी धरा,न डोला गगन, न कोई कान्हा मुझे बचाने आया। मैं लुटती रही,तड़फती रही, मौत ने ज़िन्दगी को तिलक लगाया।। शब्दों में नहीं वो ताकत, जो मेरी पीड़ा कर सकें बयान। जो हुआ संग मेरे मैं ही जानती हूं, इंसान बन गया था हैवान।।। मैं तो छोड़ धरा को आ गई अब ऊपर, अंतहीन कष्टों से मुझे तो मिल ही गया छुटकारा। पर कैसे होंगे वे मेरे अपने, कैसे मेरे अंत को उन्होंने होगा स्वीकारा।। वे रोज़ ही मरते होंगे सारे, मेरी यादों के जख्म का मरहम न कोई भी लाया, कैसे सहजता से छूटा होगा दामन उनका, मेरी विदाई ने कितना होगा उन्हें रुलाया।। पुरुषों के इस समाज ने मुझे भीतर तक है हिलाया, तब से ही मैं सिसक रही हूँ, मेरा रोना अब तक बंद न हो प...