लो फिर आया यादों का बंवडर फिर यादों की सुनामी आई है। कोई और नहीं, इन यादों के दर्पण में नजर सिर्फ और सिर्फ मां जाई ही तो आई है।। फिर चल पड़ा यादों का काफिला, फिर बचपन कहने लगा है अपनी कहानी। बहुत कुछ याद आता है जेहन में, अधूरी सी लगती है जिंदगानी।। सबको अपना बना लेती थी, रहती थी लबों पर सजी सदा तेरे मुस्कान। ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई, सच तूं ईश्वर का वरदान।। फिर उबल पड़ी हैं यादें, फिर धीरज भी संयम खोने लगा है। फिर सजल से होने लगे नयन हैं, मन का आंगन भी जैसे कोई भिगोने लगा है।। फिर से सावन भादों जैसे सुना रहे हैं कोई गहरी सी दास्तान। सब कुछ भीग भीग सा गया है, बहुत छोटा शब्द है तेरे लिए महान।। किसी विशाल वृक्ष की जड़ें जैसे धरा के सीने में बहुत भीतर तक होती हैं समाई। ऐसी ही थी तूं मेरी सबसे अलग सबसे प्यारी सी मां जाई।।