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भरोसा ही परोसा है निगम ने सदा

Poem on Mother s day

लोग कहते हैं आज मातृ दिवस है कौन सा दिवस है जो बिन मां के हो??? **स्नेह,समर्पण,सुरक्षा,सहयोग जिस एक ही गांव में रहते हैं मेरी छोटी सी समझ को आता है समझ,उसे मां की ठंडी छांव कहते हैं** **तेरी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा सी अधिक तो नहीं आता कहना तूं रही कौओं में हंसा सी** 11स्वर और 33 व्यंजन भी कम हैं जो तेरे बारे में बता पाऊं मां तेरे जैसी कर्मठता और जिजीविषा बता दे कहां से लाऊं???? *जिंदगी की किताब के हर किरतास पर नजर मां तूं हीं तूं नजर आती है जैसे एक सांस आती है  एक सांस जाती है* कहां से लाऊं वो बारह खड़ी जो तेरे बारे में कह पाऊं नहीं सामर्थ्य मेरे लफ्जों में जो भावों को मैं बता पाऊं

मां की ठंडी छांव

*निगम की सच्ची पहचान* विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा