हर पत्ता अलग होना चाहता है शाख से स्वार्थ का पलड़ा हो गया है भारी।।।।।। मिलता था चैन जिस माँ की गोद मे, वही बूढ़ी माँ क्यों अब लगती है खारी।। समय का दरिया यूँ ही बहता जाता है। समय पंख लग उड़ जाता है।। । ।। बीत वक़्त नही आता लौट कर, पाछे इंसां पछताता है।।।। जिसके हर पल में तुम थे,। आज कुछ पल उसको देना क्यों लगता है भारी??? मिलता था चैन जिस माँ की गोद मे वही माँ अब क्यों लगती है खारी?????