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प्रकृति गाती है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

प्रकृति गाती,हंसती,मुस्कुराती,हंसती और हंसाती है खुश होते हैं हम तो बारिश लगती है मधुर फुहार,उदास होते हैं तो हमे रोती नजर आती है भेद भाव नहीं करती कभी ये, धनी निर्धन दोनों को ही एक सा सिखाती है अनुशासन सीखो प्रकृति से, इसकी गोद में मानवता जन्नत पाती है