प्रकृति गाती हैं। कभी हँसती औऱ कभी हंसाती है। कभी कभी उदास भी होती है ये,जब सूरज ढल जाता है। कभी कभी रोती भी है ये जब इंसा निरीह बेकसूर बेजुबान प्राणियों पर कटार चलाता है। भेदभाव नही करती प्रकृति,सबसे अच्छी शिक्षक है। अनुशासन सीखो प्रकृति से,इसकी गोद में कुदरत है। रवि से सीखो तपना,समय पर उगना और अस्त होना। नदियों से सीखो,लगातार बहते रहना। सागर से सीखो,शांत धीर गंभीर रहना।। कोयल से सीखो, पंचम स्वर में गाना। समीर से सीखो,सबको प्राण वायु देना।।