सुविधा की सड़क की मुसाफिर नहीं,संघर्षों की पगडंडी की पथिक रही तूं मां जाई। चुनौतियां देती रही दस्तक तेरी जिंदगी की चौखट पर,तूं हर बार कुंडी खोलने आई।। *हानि धरा की लाभ गगन का* तेरे बिछौडे से बात यही मुझे समझ आई।। बोलने के लिए जब भी खोले लब तूने,लगा बजने लगी हो कोई मधुर सी शहनाई।। सबके दिल में ऐसे कर गई बसेरा,जैसे तन संग रहती हो परछाई।। खुद मझधार में होकर भी साहिल का पता बताने वाली बस इतना तो बता जाती हमें इतना हौंसला कहां से लाई??? उम्र से नहीं,समझ से आता है बडप्पन, उच्चारण से नहीं आचरण में तूने उक्ति सिद्ध कर के दिखाई।।