हल धर ने हिला दिया सबको, हुए इंद्रप्रस्थ के हाल बेहाल। मनभेद भी है,मतभेद भी है, छाए फिजा में आक्रोश,जुनून,जोश,मलाल।। जाने कब हल निकलेगा इस मसले का? आता है नजर बस बवाल ही बवाल।। सीमाओं पर डाले हैं डेरा, घर छोड़ कर आए हैं। लाल धरा के सो रहे धरा पर, ऊपर अम्बर के साए हैं।। हे ईश्वर! अब तूं ही कुछ कर, बदल दे अब ये सूरत ए हाल।। नहीं देखा जाता अन्नदाता को ऐसे, जेहन में खड़े होते हैं, जाने ऐसे कितने ही सवाल।। हल धर ने हिला दिया सब को, हुए इंद्रप्रस्थ के हाल बेहाल। संगठन में होती है शक्ति, यही आता है समझ फिलहाल।। एक चला,दो चले, यूं ही बढ़ता था काफिला, रुकी नहीं कदमों की ताल।। न रुके,न थमे,न हारे,न टूटे, सच में माटी के लाल हैं बड़े कमाल।। हल धर ने हिला दिया सबको, हुए इंद्र प्रस्थ के हाल बेहाल।। आज नहीं तो कल समस्या का समाधान मिल ही जाएगा। पर रच दिया जो अनोखा इतिहास इन्होंने, कोई कभी भुला नहीं पाएगा।। सबकी भूख मिटाने वाले, रहें सदा सुखी और खुशहाल।। माटी से उपजे,माटी में पनपे, माटी में ही तो मिल जाएंगे। माटी का लाल ही तो है हल धर, ऋण इसका कैसे चुका पाएंगे??? नित पसीना बहा...