जब नारी का कर रहा था वो निर्माण खुदा भी खुद पर रह गया हैरान।। सृजन भी करती है,परवरिश भी करती है। औलाद के जन्म से अपनी मृत्यु तक, मन को उनके भावों से सतत भरती है।। सोच में जिसके निहित है, सिर्फ और सिर्फ हमारा ही कल्याण। धीरज भी दिया उसे,ममता भी दी, दे दिया जैसे उसे ही पूरा जहान।। स्नेहप्रेमचंद