कब है बदल जाता है था में,हो ही नही पता अहसास,सिरहन सी उठती है हिया में,सोच वो बहुत अपना नही है अब अपने पास,आएगा,सो जायेगा,है ज़िन्दगी का सीधा सा हिसाब,पर उमड़ घुमड़ जाते है,यदाकदा यादों के बादल बेहिसाब,जन्म से जुड़े हुए हैं उनसे,ज़िन्दगी की खो गयी सबसे खास किताब,वो तो कर गए ज़िम्मेदारियाँ अपनी पूरी,ममता,प्रेम लुटा गये बेहिसाब,पर हम ने नही पढ़ पाये कुछ खास पन्ने उस किताब के,हिया तभी है भीतर से बेताब,वो यादों में है,सांसों में है,सोच में है,विचारों में हैं,उन्हें ईश्वर के समकक्ष देना होगा ख़िताब