कब बीत गए बरस 29 हो ही नहीं पाया अहसास कारवां चलता रहा, समय गुजरता गया, घटती रही घटनाएं, कभी आम और कभी खास।। जीवन के सफ़र की कल्पना भी अब एक दूजे बिन लगती है अधूरी। ये रिश्ता ही ऐसा है, हौले हौले सिमट जाती है हर दूरी।। हर भोर उजली है संग एक दूजे के, और हर सांझ बन जाती है सिंदूरी।। साथ बना रहे,विश्वास सजा रहे, है नाता सच मे ये अति खास। कब बीत गया समय इतना, हो ही नहीं पाया आभास।।