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बेटी दिवस के मायने(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बेटी दिवस को क्यों ना इस बार कुछ ऐसे मनाएं बेटी सुरक्षित हो वतन में हमारे, गण और तंत्र दोनों की जिम्मेदारी बनाएं कोई बेटी ना हो अपमानित द्रौपदी सी कभी सब माधव बन कर आगे आएं क्यों इंतजार करें हम आएंगे कान्हा, बांसुरी नहीं सुदर्शन चक्र चलाए दमन हो बुराई का सदा के लिए, मन भीतर से सबके निर्मल हो जाएं हो ना कभी दागदार दामन किसी बेटी का , इस मुहिम का सब हिस्सा बन जाएं सब निर्भय हों सब सुरक्षित हों ऐसा विश्वाश हर बेटी में जगाएं तब ही मनेगा सही मायने में बेटी दिवस,ऐसी अलख जन जन में जगाएं फिर ना दहले कभी दिल्ली,कभी मणिपुर कभी कलकत्ता फिर ऐसी घटना कोई ना दोहराए बचेगी बेटी तभी तो पढ़ेगी बेटी पढ़ेगी बेटी तो आगे बढ़ेगी बेटी उच्चारण नहीं इसे आचरण में लाएं शिक्षा भाल पर संस्कारों का ऐसा टीका लगाएं कोई बेटी नहीं पराई,  दूजे की अस्मत अपनी ही पाएं ऐसी सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी क्यों ना मिल कर हम सब आगे बहाएं फिर बेटी दिवस मनाने की कोई जरूरत ना होगी, ऐसी सोच का दीपक घर घर में जलाएं