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किताब

ज़िन्दगी की किताब बड़ी अजीब है जितना पढ़ो पाठयक्रम बढ़ता जाता है। थोड़ा बहुत समझ मे आता है, कुछ याद रह जाता है, कुछ बिल्कुल ही समझ नही आता। कुछ तो बस उलझनें बढ़ाता है।।         स्नेहप्रेमचंद

मिज़ाज़ ए ज़िन्दगी

मिज़ाज़ ए ज़िन्दगी कैसा भी हो चलते जाना रे।।                     स्नेहप्रेमचंद

पहेली