प्रार्थना में सच मे ही है शक्ति इतनी असम्भव भी सम्भव हो जाता है। यूँ ही तो नही कहा गया भगत के आगे, भगवान भी झुक जाता है।। सामूहिक प्रार्थना में होता है बल अधिक, सच मे मनचाहा पूरा हो जाता है। आस्था है, ये अंधविश्वास नही, धीरे धीरे सब समझ मे आता है। होता है समर्पण गर सच्चा, द्रौपदी को कान्हा मिल जाता है। आओ करें सब मिल कर ये प्रार्थना जग से आपदा ये चली जाए भारी, वो देखो आ रही है माँ दूर से, करके शान से सिंह सवारी।। अपने बच्चों का कष्ट हरेगी, मरुधर में हरियाली खिलेगी। खौफ का जो छाया है अंधेरा निर्भयता की ज्योत्स्ना बिखरेगी।। सब सहज निर्भय होंगे, ज़िन्दगी फिर से अपनी पटरी पर चलेगी।। स्नेहप्रेमचंद