फिर हुआ घिराव अभिमन्यु का फिर से धरा का सीना घायल है, फिर रचा गया है चक्रव्यूह जिसके लिए, जन जन उसका कायल है।। आवाज़ है जो सवा करोड़ की, जन जन का है जो आशा बिश्वास, जिसके नेतृत्व को विपक्ष भी मानता है,वो है, सच मे बहुत ही खास।। कुछ नही, बहुत कुछ कर गुजरने की आशा है जिसके चौड़े सीने में, कहता ही नही,लाता है जो दिन अच्छे, जिसे देख कर ऐसे पद पर आता है मज़ा सा जीने में।। फिर ऐसे वीर अभिमन्यु को कौरवों ने चहुँ दिशा से घेरा है, उस अभिमन्यु को नही आता था चक्रव्यूह से निकलना,पर इस अभिमन्यु ने अंधेरों में किया सवेरा है।। जनकल्याण ही सर्वोपरि है न कुछ तेरा है,न मेरा है, फिर हिंसा के निष्ठुर कदमों ने कोमल पर सशक्त अहिंसा को रौंदा है, फिर गुमराह हुए अज्ञानी आक्रोश जगह जगह पर कौंधा है।। फिर जाल फेंका गया उस अभिमन्यु पर, कथनी कर्म में जिसके भेद नहीं, अडिग सोच में जिसके कोई छेद नही, बड़े सपने,बुलन्द हौंसले,दूरगामी सोच कर्मठता हैं जिसके गहने, बेहतर हो, ये वो अभिमन्यु ही नहीं, तूँ,मैं, हम सब पहने।। इस अभिमन्यु को चक्रव्यूह से बड़ी बखूबी निकलना आता है, ज़रूरी नही इतिहास सदा ही ख़ुद को दोहराता है।। स...