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नही बनना मुझे कोई देवदासी

नही बनना मुझे कोई देवदासी जहाँ।मेरा दामन कुचला जाता हो, जाने कितने ही अनकहे अहसासों को क्रूरता से मसला जाता हो, नही आते अब कोई माधव किसी पांचाली के लिए,जहाँ कोई बेबसी सिसकी का नाद सुनाता हो।।

नही बनना मुखे गांधारी धृतराष्ट्र की

नही बनना मुझे गांधारी धृतराष्ट की तो तन संग,मन नेत्र भी मूंदे जाता हो, नही लगाया अंकुश दुर्योधन की मनमानी पर हर उजियारा, तमस जो जीवन मे लाता हो।।

नही बनना मुझे शकुंतला किसी दुष्यंत की

नही बनना मुझे शकुंतला किसी दुष्यंत की, जो जंगल मे अकेले छोड़े जाता हो, भुला देता हो जो हर प्रेम कहानी, चाहे कोई कितना ही याद दिलाता हो।।

नही बनना मुझे यशोदा गौतम की

नही बनना मुझे यशोदा गौतम की, जो भरी रात में सोया छोड़ मां बेटे को, सत्य की खोज में जाता हो। पल भर भी नहो सोच हमारा तोड़ा झट से,चाहे कितना ही गहरा नाता हो।।

नही बनना मुझे किसी गौतम की अहिल्या

नही बनना मुझे गौतम की कोई अहिल्या   जो मुझे श्रापग्रस्त करवाता हो, छल से तो मुझे छला इंद्र ने, उद्धार हेतु बरसों मुझे राम प्रतीक्षा करवाता हो।।

नही बनना मुझे पांचाली धर्मराज की

नहीं बनना मुझे पांचाली धर्मराज की जो जुए में मुझे दाव पर लगाता हो, भरी सभा मे केश खींच लाया दुशाशन नारी अस्मिता को माटी में मिलवाता हो।।

नही बनना मुझे सिया राम की

नहीं बनना मुझे सिया राम की, जो सर्वज्ञ होकर भी अग्निपरीक्षा करवाता हो, गर्भावस्था में भी अपनी अर्धांगिनी को धोखे से वन में भिजवाता हो।।