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श्रृंगार। thought by snehpremchand

भावों की दुल्हन को जब अल्फ़ाज़ों का दूल्हा अपनी जीवनसंगिनी कर लेता है स्वीकार, अनेकों कल्पनाएं आ जाती हैं दौड़ी अभिव्यक्ति का करने श्रृंगार। अनुभव तो पहले से ही होता है खड़ा उनके द्वार।।          स्नेहप्रेमचंद