जीवन का प्रतीक प्रकृति,प्रकृति ही है जीवनाधार। सहेजे,सँवारे इसे प्रेम से,करना सीखें मन से प्यार। विविधता से परिपूर्ण,जीवंत,विहंगम प्रकृति हमारी रंगों से भरी,जीवमदायिनी,नयनाभिराम है सारी।। जिजीविषा को जगाती,उमंग,उल्लास को सजाती सृजन करती सदाजाने कितना,आशादीप जलाती हवा,जल,धरा को कर रहे विषाक्त हम,ढेरों बार| जीवन का प्रतीक प्रकृति,प्रकृति ही है जीवनाधार। मांसाहार की परंपरा ही,ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेदार। त्याग कर अपनी वहशी आदतें,करें शाखाहार से प्यार।। हो बेहतर,निर्दोष,निरीह,बेजुबान प्राणियों पर कभी न चलाएं निर्मम कटार। ध्यान से सोचो प्रकृति ने हमे खाने को दिए हैं अनेकों उपहार।। स्नेहप्रेमचंद