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हमारे शांताक्लॉज़

मुझे तो बस लगता है इतना नानक जी हैं शांताक्लॉज़ हमारे। हर पेट को भोजन मिले, लंगर प्रथा चलाई हर गुरुद्वारे।। कितनी भी संगत क्यों न हो, कभी कोई भूखे पेट नही रहता। पंक्तिबद्ध एक सा सब को भोजन मिले, इसी ज़ज़्बे का झरना नित झर झर बहता।। अहंकार रहित हो कर करो सेवा, यही नानक बंदा सच्चे दिल से कहता। न दिखावा न कोई नाटकबाजी, ऐसे सारे गुरु के प्यारे।। मुझे तो बस इतना लगता है नानक जी हैं शांताक्लॉज़ हमारे।।