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Showing posts with the label poem on father's day

बिन बोले भी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सबसे प्यारा नाता पिता पुत्र का(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

दशरथ और राम(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

पिता पुत्र के गहरे नाते के बारे में सोचो तो दशरथ और राम का जिक्र जेहन में आता है ऐसी है हमारी भारतीय सभ्यता संस्कृति ऐसा भारत में पिता पुत्र का नाता है पुत्र पिता के वचनों की खातिर राज पाठ छोड़ तत्क्षण वन को जाता है  पिता को भी पुत्र वियोग में तन त्यागना अधिक भाता है इससे गहरा और क्या नाता होगा पिता पुत्र का, क्या आपके जेहन में ये उदाहरण नहीं आता है?????

पिता (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

परवाह,प्रेम,भरोसा,सुरक्षा,शक्ति स्तम्भ और प्रेरणा पुंज हैं पर्याय पिता के, यही पिता की सच्ची परिभाषा स्पोर्ट सिस्टम,स्ट्रेंथ,सिक्योरिटी है पिता यथासंभव पूरी करता है हमारी हर अभिलाषा कभी रुकता नहीं,कभी थकता नहीं, चुनौतियों से मानी ना हार कभी, लाया ना जीवन में कभी निराशा ताने और कटाक्ष नहीं, देता है हमें पिता सदा हिदायतें, भरता है जीवन में आशा सुखद वर्तमान,उज्जवल भविष्य रहे सदा हमारा, शांत कर देता है हमारी हर जिज्ञासा पिता है तो मावस में भी पूनम से उजियारे की रहती है आशा अपनी जरूरतों को कम करके हमारे शौक पूरे करने की पिता की सदा रहती है अभिलाषा इजहार भले ही नही करना आता पिता को,पर चित में बहता है सागर स्नेह का,पिता जीवन की सबसे बड़ी आशा संवाद और संबोधन कभी कम ना करना पिता से, पिता प्रेम की सबसे सुंदर परिभाषा

Father's day special (( पिता पर बेहतरीन कविता स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*संवाद भले ही कम हों पिता पुत्र के पर नाता दिनों दिन गहराता है* *महफूज है हर बचपन पिता के साए तले, मुझे तो इतना समझ में आता है* *पिता की रोक टोक भले ही सुहाती नहीं बच्चों को, फिर संवाद और संबोधन कम हो जाता है* *फंस जाते हैं जब कभी हम अभिमन्यु से जीवन के चक्रव्यूह में, मात्र पिता ही हमे बाहर लाता है* *घेर लेती हैं जब जीवन की परेशानियां कौरव सी, पिता तत्क्षण मरहम बन जाता है* *बच्चों की थाली में आजीवन रहे रोटी पिता तो बस यही सोचे जाता है पिता की छत्रछाया तले है बहुत ही ठंडक, ये समझ बाद में आता है* *इजहार भले ही ना आता हो पिता को करना, पर पिता पल पल हर पल बच्चों के सुखद भविष्य की सोचे जाता है* *पिता का बोलना भले ही भला न लगे हमे,पर समय संग हर धुंधला मंजर सपष्ट हो जाता है पिता से बढ़ कर नहीं कोई हितेषी जग में,पिता हर धूप छांव में ढाल बन जाता है* *कहते हैं आज पितृ दिवस है मैं कहती हूं कौन सा दिन है पिता बिन बेफिक्र और सुरक्षित सा, हर दिवस तो पितृ दिवस बन जाता है* *जमी है बर्फ जो इस नाते पर बरसों से क्यों कोई इसे नहीं पिंघलाता है* *मां जैसे बच्चे पिता से भी