न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान।। धन चाहिए,न दौलत चाहिए, चाहिए औलाद के दो मीठे से बोल। मूर्ख प्राणी ही ममता को, दूजे रिश्तों से लेते हैं तोल।। फरिश्ता है माँ अनमोल,धरा पर, माँ बिन जीवन है वीरान। हर शब्द पड़ जाता है छोटा , जब माँ का करने लगो बखान।। अपनी कार्यशैली से माँ, संस्कारों की घुट्टी सहज पिला देती है। देती ही देती है वो ज़िन्दगी भर, औलाद से कुछ नही लेती है।। बहुत शक्ति है उसकी दुआओं में माँ होती है गुणों की खान। पत्थर भी पिंघल जाएं जिसकी ममता से, माँ का सम्भव नही बखान।। न कोई था,न कोई है,न कोई होगा, माँ से बढ़ कर कभी महान।। प्रेमकावड़ में जल भर आकंठ तृप्ति का, माँ सहज ही करा देती है अहसास। घर नही स्वर्ग होता है वो आशियाना, जहाँ पर माँ करती है वास।। माँ है जहां,ममता है वहाँ, माँ है जहाँ, पर्व उत्सव उल्लास है वहाँ, माँ है जहाँ, जीवन है वहाँ।। हर माँ सुंदर है जग में, सामर्थ्य से अधिक कर देती है कुर्बान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में, सिमटा हुआ है पूरा जहान।। शनै शनै हमारे अस्तित्व को, माँ अपने व्यक्तित्व से ऐसे रंगती...