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happy new year

happy new yearwish you

महफ़ूज़ रहे हर प्यारा बचपन

महफूज़ रहे हर प्यारा बचपन, मिले हर बचपन को अधिकार। लगे मोहर न बेबसी  बचपन को, मिले शिक्षा और मिलें संस्कार।। जाड़े की सर्द रातों में, मिष्ठुर बर्तनों की काली कालिमा, न नन्हे हाथों को पड़े छुड़ानी। हों किताबेंखेल खिलौने उन हाथों में, तांकि सफल हो सके हरेक जवानी।। न हो कोई अपराध,  न हो कोई भ्र्ष्टाचार। एक बात आए समझ जन जन को प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। बचपन ही भविष्य है जवानी का, यह सोच कदापि नहीं निराधार। हर बच्चा है विशेष स्वयं में, होता अथाह गुणों का भंडार।। बस भटकें न कदम,रहे न भरम सही समझ को मिल जाए आकार। आये सही तरह से करना लक्ष्य निर्धारित फले फूले खिले ये संसार।।             स्नेह प्रेमचन्द

कितना अच्छा होता

कहाँ गयी तहज़ीब ,क्यों सो गए संस्कार

कहाँ गई तहज़ीब,क्यों सो गए संस्कार?? ये पंखों को क्या परवाज़ मिली, हो गए सपने सारे ज़ार ज़ार।। क्या कमी रह गई परवरिश में हमारी,  किस सोच को हकीकत का मिला आकार?? अंकुश न लगा जब मनमानियों पर, संवेदनहीनता का होने लगा श्रृंगार।। बेबसी ने जब ली सिसकी, चहुँ दिशा में हो गया हाहाकार।। कहाँ खो गयी तहज़ीब,कहाँ सो गए संस्कार??? जो कुछ भी हम देते हैं जहाँ में, वही लौट कर एक दिन आता है, सीधा सा गणित है खुदा की खुदाई का, क्यों इंसा समझ नही पाता है? बीत जाता है वक़्त हौले हौले,  फिर पाछे वो पछताता है।। सोच,कर्म,परिणाम की सदा बहती है त्रिवेणी, इतिहास भी यही   दोहराता है।। ईश्वर का पर्याय हैं मात पिता, क्यों उन्हें प्रेम,सम्मान नही दे पाता है?? सही समय पर सही कर्मों की, हो बेहतर बजने लगे शहनाई। उत्सव न बदले मातम में, हो न जग में रुसवाई।। भोग विलास,मनमानी, अराजकता, क्या यही रह गया सोच का आधार? उपभोग ही तो नही करने आये है, हो सोच में परिष्कार।। कहाँ गई तहज़ीब,कहाँ सो गए संस्कार???          स्नेहप्रेमचन्द

मेहनत और आलस्य

मित्र

राम सखा सुग्रीव थे और शाम सखा थे सुदामा। धर्म,क्षेत्र,मज़हब,जात पात से ऊपर है दोस्ती, अपनत्वसंगीत में सौहार्द का सदा बजता है मधुर तराना।।  जाने किन पिछले संस्कारों से एक आत्मा का दूसरी आत्मा से जुड़ जाता है नाता, जाने कौन सी अनजानी सी कशिश को प्रेम अपने गले है लगाता।। मन की मन से बंध जाती है डोर। हर पहर सुहाना हो जाता है,   हो चाहे निशा,दोपहर या फिर उजली भोर।। साँझे साँझे से अहसास कर देते हैं सब इज़हार। कतरा कतरा सी  जिंदगी को होने लगता है खुद से प्यार।। वक़्त का कारवां गुजरता रहता है,मीठे पलों की सौंधी महक से सब खुशगवार। कल खेल में हम हों न हों,पर यादों के तो बजते रहेंगे तार।। दोस्ती प्रेम है,दोस्ती उल्लास है,दोस्ती जीने की चाह है,भूलभुलैया में अदभुत सी राह है।। बजा नाद दोस्ती का जिस चित में,हो जाता है वो प्रेम दीवाना, राम साख सुग्रीव थे और शाम सखा थे सुदामा।।          स्नेह प्रेमचन्द