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कभी कभी thought by sneh premchand

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हम गौण को मुख्य और मुख्य को गौण क्यों समझते हैं।।

साँझ ढले

जब जब मैंने साँझ ढले, मन की दहलीज लाँघ, मन की चौखट पर उदासी को, दस्तक देते पाया। ये क्या,ये तो था, मेरी माँ का मधुर सा साया।।            स्नेहप्रेमचन्द

साँझ ढले composition by snehpremchand

परिभाषा प्रेम की poem by snehpremchand

भावना और बुद्धि poem by snehpremchand

प्रेम poem by snehpremchand

न मन्दिर न मस्जिद में