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नाप thought by snehpremchand

अल्फ़ाज़ों का आईना भावों का प्रतिबिंब शत प्रतिशत दिखा ही देगा,ज़रूरी तो नहीं।अनुभूति की गहराई इज़हार के इंचीटेप से मापी ही नहीं जा सकती।। इज़हार ए अहसास करो भी तो दूसरे को समझ आ जाए, ये भी कतई ज़रूरी नहीं।सबकी सोच,प्राथमिकताएं,अनुभव सब अलग अलग हैं,यही कारण है कई बार जो लेखक लिखता है पाठक वही नहीं पढ़ पाता। जैसे सबके चश्मे का नम्बर अलग है ऐसे ही सबकी सोच का दायरा भी अलग है।कोई तो चींटी भी नहीं मार सकता,किसी को मांसाहार करने से भी कोई परहेज नहीं।।                    स्नेहप्रेमचंद                 

जन्म मृत्यु। thought by snehpremchand

तन से आत्मा का संजोग ,जन्म कहलाता है,तन से आत्मा का वियोग मृत्यु ।।आत्मा अमर,अविनाशी है,तन तो किराए का घर है,रूह इस किराए के घर में एक निर्धारित समय के लिए है,यही ज़िन्दगी कही जाती है।।               स्नेहप्रेमचंद

पतझड़ thought by snehpremchand

तन की कहानी एक बीज से वृक्ष तक के सफर के माध्यम से समझ आती है,जैसे बीज धरा की कोख  से अंकुरित,पल्वित,पुष्पित और एक दिन झड़ जाता है,ऐसा ही तो मानव जीवन है,नव किसलय तभी खिलेंगी,जब पुराने पत्ते झड़ जाते हैं, फिर वियोग पर दुखी किसलिए होना,यह तो अटल सत्य है।।खिज़ा यानि पतझड़ को तो एक न एक दिन आना ही है।।

दस्तक. thought by snehpremchand

दिल  जब भावों ने पहन परिधान सुंदर,सहज,सार्थक अल्फ़ाज़ों का,दी दस्तक, किवाड़ खोलने की चौखट परसृजन आया। सहसा ही बह गई कविता की सरिता,मन रोमांचित हो आया।।           स्नेहप्रेमचंद

लेखन

लेखन का कोई निर्धारित पाठ्यक्रम हो ही नही सकता,हाँ विविध पाठ हो सकते हैं जैसे अनुभव,सोच,शिक्षा, संस्कार,कल्पनाशक्ति, प्राथमिकताएं।

साहित्यकार

मर कर भी कभी नही मरता एक साहित्यकार, फ़िज़ां में महकती रहती है उसके लेखन की महक,आगामी पीढियां भी करती रहती हैं  साक्षात्कार।।

ओ लेखनी

ओ लेखनी, अहसासों के इत्र से यूँ ही सदा महकती जाना, ओ लेखनी,अल्फ़ाज़ों की मधुर वाणी से यूँ ही सदा चहकती जाना, ओ लेखनी चलती जाना तूँ,बस खुद पर तूँ कभी न इतराना, अच्छे साहित्य का होता है सृजन, जब अल्फ़ाज़ों का सुंदर अहसासों से होता है याराना, प्रेम की बज उठती है धुन सर्वत्र,ज़र्रा ज़र्रा गाने लगता है मधुर तराना।।             स्नेहप्रेमचंद